स्वयं अध्ययन एक जैविक पद्धति से सीखने की प्रक्रिया

स्वयं अध्ययन एक जैविक पद्धति से सीखने की प्रक्रिया

 

सिखना और सिखाना यह एक जैविक प्रक्रिया है, हम सभी भारत के नागरिक इसे जानते है, पर मानने को तयार नहीं. पिछले लेख को पढ़कर मुझे मेरे कुछ दोस्तों ने कहा, स्वयं अध्ययन करना अपने आप में एक चुनोती है. उसके कई कारण बताये, पर मैं उन किसी भी करना से सहमत नहीं हु. क्योंकि मैंने जो मास्टर डिग्री लिया है वह भी 10 वि के बाद नोकरी करते हुए. इसका मतलब कोई भी स्वयं अध्ययन कर सकता है.

 

अब बात करते है की यह जैविक कैसे है. और इस पर भी बात करेंगे की किस से बच्चो के इस स्वाभाविक गुण को हम पढाई के नाम पर ख़त्म करते जा रहे है.

 

आप सभी को पता है की जब कोई भी बच्चा माँ के गर्भ में होता है, वहा उसे कोई नहीं सिखाता की कैसे बढ़ना है, माँ के गर्भ में वैसा वातावरण तयार होता है, जिसकी मदत से बच्चे का विकास होता रहता है. और यह कोई दैवीय कारण नहीं है यह एक जैविक प्रक्रिया है जो हर प्राणी के साथ होता है.

 


धीरे धीरे बच्चे का शरीर बनाता है, फिर बच्चा हलचल करने लगता है, वह सांस लेता है, हाथ-पैर चलाता है. 7 से 9 महीना बच्चा माँ की गर्भ में सिख रहा होता है, कैसे घुमाना है, कैसे हाथ-पैर चलाना है. बच्चा जैसे ही माँ की गर्भ से बहार आता है, उसे किसी ने भूख लगने पर रोने के लिए नहीं बोला था, पर वह भूख लगने पर जोर जोर से रोता है. जिससे माँ को पता चलता है की अब उसे दूध देना है.

 

वैसे ही, जब हमारा बच्चा पहली बार पलटता है, हम सभी को बताते है की किस तरह से उसने पलटी मारी, पर क्या उसे किसी ने ऐसा करने को सिखाया था. अब बच्चा धीरे धीरे आगे की तरफ सरकने की और घुटने पर चलने तथा उठने की कोसिस करता है, उसके बाद वह किसी की मदद से या दीवार के सहारे चलने भी लगता है. यह सभी बाते उसे किसने सिखाया, किसी ने नहीं. यह सभी हमारे जीवन में जैविक पद्धति से ही सिखने का एक भाग है.

 

इंसान ही एक ऐसा अदभुत प्राणी है, जो अपने दिमाग का इस्तमाल अपने आने वाली पीढ़ी के लिए करता है. हम अपनी गलतियों और अनुभवों से सिखते है. तथा सिखना एक प्रक्रिया है, हम हर रोज, हर समय कुछ ना कुछ सिखते रहते है. वैसे ही हम सभी जानते है की हममें, हमारे पूर्वजो के गुण आते है. हम यह कभी नहीं भूल सकते की हमारे पूर्वज स्वयं अध्ययन ही करते थे. शिक्षा व्यवस्था अभी १५० साल पहले आई है. इससे पहले सभी स्वयं अध्ययन ही किया करते थे. हमारे पूर्वजो ने जो स्वयं अध्ययन करके अर्जित किया उसे ही पुस्तक स्वरूप में लिख कर अब १५० साल से हमें ही पढ़ा रहे है, और शिक्षा का धंधा कर दिया है.

उदाहरण:

v खेती की जो खोज की गई उसके लिए कहा पढाई की गई थी.

v आग की जो खोज की गई उसके लिए कहा पढाई की गई थी.

v शिकार करने की कला भी स्वयं अध्ययन से ही सिखा था.

v समूह में रहने के फायदे ताकि कोई उनका कोई शिकार ना करे.

ऐसे ही सभी चीजे जो धीरे धीरे विकसित होती गई और आज तंत्रज्ञान में बदलाव के साथ साथ उसे हमें ही सिखा रहे है. क्या यह धंधा नहीं है??

 

हमारी सभी स्कुल की किताबे 3 से 5 साल में बदलती है. पर आज इंटरनेट की गति के हिसाब से जानकारी बदल जाती है. बच्चो के पास आज स्कुल के किताबो से पहले ही जानकारी होती है. हम पहले स्कुल की किताब में विषय पढ़कर जाते थे या शिक्षक पढ़ते थे तभी हमें समझ आता था. पर अभी हर विषय को हमारे बच्चे इंटरनेट की मदद से पहले ही समझ लेते है.

 

हम आज भी ९० के दशक में जीना चाहते है, पर यह नहीं भूलना चाहिए बच्चो के हाथो में मोबाइल है और उसमे 21 वि सदी का इंटरनेट है. जो बच्चो को हमसे कदम आगे रखता है.

 

इसमे पालको को ध्यान देने की जरुरत है की बच्चा क्या जानकारी समेट रहा है.

 

हम सभी जानते है की, जैसे हमारे हाथो की 5 उंगलिया एक जैसे नहीं है, वैसे ही हर बच्चा अलग है, उसके सोचने-समझने की ताकत अगल है, हर बच्चे के पास अलग-अलग कौशल्य है. अगर यह आप सही में मानते है, तो एक सवाल अपने आप से जरुर पूछे. क्या कक्षा के 30 से ४० बच्चे एक ही जैसे होते है जिन्हें एक ही जैसे पढ़ाया जाता है. क्यों हर बच्चे के अनुसार विषय नहीं तय किये जाते. क्यों हर बच्चे को अपने हिसाब से पढ़ने नहीं दिया जाता. क्योंकि हमारे देश में उसके लिए कोई व्यवस्था ही नही है. सिर्फ बच्चो को पढ़ाने पर जो दिया जाता है, ताकि अच्छे मार्क्स ला सके और आगे जाकर कोई नोकरी कर सके. क्या पढ़ाई सिर्फ नोकरी करने के लिए ही करनी चाहिए??

 

कैसे हम और शिक्षक बच्चो के इस जैविक तथा स्वाभाविक गुण को ख़त्म किये जा रहे है.

अभी तक तो आपको पता चल ही गया होगा की, हम सभी में जैविक पध्दति से सिखने की प्रक्रिया जन्म से ही है. हर इंसान हर समय कुछ ना कुछ सिखता रहता है. और वह वही सिखता है जो उसे अच्छ लगता है.

तो अब बात करते है कैसे पालक और शिक्षक मिलकर बच्चो में से यह जैविक पध्दति को ख़त्म कर रहे है. (मैं यहा किसी पर भी कोई आरोप नहीं लगा रहा हु. क्योंकि मैं जनता हु की हर पालक अपने बच्चे के लिए सर्वोतम देना चाहते है. और शिक्षक भी वही प्रयत्न करते है.)

 

फिर भी कुछ बाते है जो उसे समझना पडेगा.

F शिक्षको पर सिलेबर्स ख़त्म करने का दबाव होता है.

F शिक्षको को पढ़ाई के अलावा भी कई काम दिए जाते है.

F बच्चो को सिर्फ पढ़ाया जाता है, समझाया नहीं जाता.

F बच्चो को समझा में नहीं आता इसी लिए पालक बच्चो को क्लासेस में भेजते है.

F एक कक्षा में 30 से ४० बच्चे और कही कही तो 50 से भी जादा होते है.

F क्लासेस का हाल भी वैसे ही होता है.

F पालक समय के कमी का बहाना बता कर बच्चो के साथ समय ही नहीं बिताते.

F बच्चो के सवालों के सही और वैज्ञानिक जवाब ही नहीं देते.

F जो पढ़ाया जाता है उसे पढ़ने पर ही जोर दिया जाता है.

F बच्चे को अलग कुछ भी करने के लिए दोनों भी प्रेरित नहीं करते.

इन सबसे महत्त्व पूर्ण बात है की, बच्चो के साथ जो कृतीशील क्रिया होनी चाहिए वह नहीं होती जिस वजह से बच्चो का पढाई में मन नहीं लगता. फिर बच्चो का पढाई में मन लगे इसलिए शिक्षक, पालको के पास सिकायत करते है, और पालक बच्चो को और पढ़ने के लिए क्लासेस में भेजना सुरु करते है.

 

जैविक पद्धति से सीखने के फायदे:-

आप कम समय में जादा सिख जाते है.

आपके लिए जो जरुरी है आप वही सिखते है.

आप अपने उम्र के लोगो में समय से आगे चलते है.

आप कम समय में किसी एक विषय में मास्टर हो जाते है.

आपके पास अधिक समय होता है, अधिक काम करने या सिखने के लिए.

 

आपको क्या लगता है जैविक पध्दति से सिखने के और भी कुछ फायदे हे तो जरुर कमेन्ट करे. तथा इस लेख के बारे में भी अपना अभीप्राय जरुर दे.

 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे:-

श्री. देश मिश्रा

स्वयं अध्ययन करता पालक


Comments

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