स्वयं अध्ययन एक बेहतर विकल्प!

स्वयं अध्ययन

बच्चों की शिक्षा के लिए स्वयं अध्ययन एक बेहतर विकल्प है!

 

क्रांति ज्योती सावित्रीबाई फुले, इनकी शिक्षा भी घर मे ही हुई थी, उनके पति क्रांति सूर्य ज्योतिबा फुले इन्होंने 21 की उम्र में 7 पास किया, ओर दोनों ने मिलकर समाज मे महिलाओं के पढ़ने के लिए 18 स्कूल बना डाले, जहा महिलाओं को पढ़ने का अधिकार ही नही था। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को स्कूल नहीं भाया. उनकी पढ़ाई की व्यवस्था घर पर ही की गई. आगे चलकर उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना हुई; जहां प्राकृतिक वातावरण में घर जैसा माहौल था. 

 

शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर विकल्पों के अभाव, धार्मिक मान्यताओं या शैक्षणिक दर्शन के प्रभाव तथा परंपरागत स्कूल के प्रति अविश्वास की वजह से आज भारत सहित दुनियाभर में स्वयं अध्ययन का प्रचलन बढ़ रहा है.

 

स्वयं अध्ययन परंपरागत स्कूलों की तुलना में काफी लचीला माहौल देता है. यहां बच्चों की पसंद तथा स्वभाव और जरूरत के अनुसार टाइम-टेबल बनाया जा सकता है. इसके साथ ही, यह स्कूलों में आयोजित विभिन्न परीक्षाओं से होनेवाले तनाव से भी बच्चों को दूर करता है. घर पर पढ़ाई करने वाले कई बच्चे मानते हैं कि सिर्फ दो घंटे की पढ़ाई से वह स्कूल के दिनभर की पढ़ाई को पूरा किया जा सकता हैं, और बाकी समय अपने मर्जी से काम कर सकते हैं. इसमें छुट्टियों के नियोजन से लेकर, सोने-जागने को भी अपने हिसाब से तय किया जा सकता है. इससे पालक ओर बच्चों में एक मजबुत संबंध भी निर्माण होता है।

 

1970 से शुरू हुआ स्वयं अध्ययन आंदोलन

 

स्वयं अध्ययन आंदोलन की शुरुआत 1970 में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लेखकों; जॉन होल्ट और रेमंड मूरे के शैक्षणिक सुधारों के पक्ष में लिखने के साथ शुरू हुआ. उन्होंने स्वयं अध्ययन को शिक्षा की एक वैकल्पिक व्यवस्था की तरह प्रस्तुत किया. आज अमेरिका जैसे विकसित देशों में 30 लाख से अधिक बच्चे स्वयं अध्ययन के जरीये शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और इसका ट्रेंड सात फीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है. वहीं ब्रिटेन में भी घर पर रहकर पढ़ाई करने वालों की संख्या 48 हजार (2016 में) से बढ़कर 2019 में 79 हजार हो गई है. भारत में स्वयं अध्ययन करने वाले छात्रों का कोई ठोस डेटा उपलब्ध नहीं है। लेकिन जल्द ही भारत मे भी क्रांतिकारी स्वरूप से शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव आएगा, ओर अधिकांस बच्चे स्वयं अध्ययन की दिशा में जाएंगे।

 

स्वयं अध्ययन करने वाले बच्चों ने दिखाई प्रतिभा

 

अभी स्वयं अध्ययन से पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों के प्रतिष्ठित प्रवेश परीक्षाओं में अव्वल आने के बाद धारणाएं बदलती जा रही हैं. कक्षा IX- X की पढ़ाई घर पर पूरी करने वाले अंगद दरयानी ने ब्रेल ई-रीडर का आविष्कार किया और 3डी प्रिंटिंग के सस्ते विकल्प को ईजाद किया. वहीं मालविका जोशी साल 2016 में मैसाच्युट्स इंस्टीट्युट ऑफ टेक्नॉलोजी में डिग्री की पढ़ाई के लिए चुनेजाने के बाद चर्चा में आईं, वह कभी स्कूल नहीं गईं थीं. साल 2010 में आईआईटी-जेईई परीक्षा में 33 वां रैंक लाने वाले सहल कौशिक ने भी स्वयं अध्ययन ही किया था।

 

सफलता नहीं आनंद जरूरी

 

हालांकि ज्यादातर स्वयं अध्ययन के पालक इसे किसी विशेष सफलता से जोड़कर नहीं देखते हैं बल्कि इसे वैकल्पिक शिक्षण व्यवस्था मानते हैं. बेस्ट सेलिंग बुकटीच योर ऑनके लेखक होल्ट लिखते हैं, “स्वयं अध्ययन में सबसे महत्वपूर्ण चीज है कि बच्चे अपने पालको की उपस्थिति को पसंद करें, उनके साथ, उनकी शारीरिक उपस्थिति, उनकी उर्जा, यहां तक की बेवकूफी और पैशन उन्हें आनंद देने वाला होना चाहिए. पालाको को चाहिए कि वह बच्चों की हर बात से खुश हो जाएं और उनके प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करें.

 

स्वयं अध्ययन में बच्चों को उनकी जरूरत के हिसाब से मार्गदर्शक की संभावना बढ़ जाती है. यहां उन्हें दिलचस्पी, क्षमता और सीखने के तरीकों के हिसाब से निर्देश मिलता है. केन रॉबिन्सन अपनी किताब में लिखते हैं, ” शैक्षणिक सुधार का अर्थ शिक्षा का मानकीकरण नहीं बल्कि उसे छात्र के अनुकूल बनाना है, प्रत्येक बच्चे के व्यक्तिगत प्रतिभा को विकास करना है, बच्चों के लिए ऐसा वातावरण निर्माण करना है जहां वह नया सीखना चाहे और नैसर्गिक रूप से अपने कोशल्यो को खोज सके.

 

इंटरनेट से होम-स्कूलिंग हुआ आसान

 

डिजिटल साधनों की उपलब्धता और इंटरनेट की पहुंच के बाद ई-शिक्षा का विस्तार बढ़ा है. इसकी वजह से घर बैठे ट्यूशन लेना आसान और सस्ता हो गया है. इसकी वजह से दूर-दराज के क्षेत्रों में भी स्वयं अध्ययन संभव हो पाया है.  ऑनलाईन शिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराने वाले डॉ. हर्बट कहते हैं, “मुझे नहीं लगता है कि कक्षा में 30 बच्चों को एक व्यस्क के साथ एक समय में सबसे एक ही तरह के काम करवाना फायदेमंद है. हमें 21 वीं सदी में इससे आगे हटकर सोचना होगा और ऑनलाइन शिक्षण इसमें मुख्य सहयोगी साबित हो सकता है.

 

भारत में अल्टरनेटिव एजुकेशन इंडिया, पुणे होमस्कूलर्स, स्वशिक्षण- इंडियन एसोसिएशन ऑफ होम स्कूलर्स, कासकेड फैमली लर्निंग सोसाइटी, चेन्नई जैसे फोरम होम स्कूलिंग करने वाले छात्रों और पालको की मदद करती है.

 

स्वयं अध्ययन गैरकानूनी नहीं

 

कई देशों में पांच साल के बाद बच्चों को शिक्षा देना अनिवार्य है. भारत में भी 2009 मेंशिक्षा का अधिकारकानून के लागू होने के बाद 7 से 14 साल की उम्र के बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है. हालांकि एक जनहित याचिका के जवाब में केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से कहा गया कि स्वयं अध्ययन में कुछ भी गैरकानूनी है.

इसे भी जरूर पढ़ें  स्वयं अध्ययन के लिए : चार महत्वपूर्ण प्रक्रिया।

एनआईओएस या आईजीसीएसई के माध्यम से दे सकते हैं बोर्ड की परीक्षा

 

स्वयं अध्ययन करने वाले छात्र NIOS (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपेन स्कूलिंग) के माध्यम से 10वीं और 12वीं की डिग्री हासिल कर सकते हैं या IGCSE (इंटरनैशनल जेनरल सर्टिफीकेट ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन) के माध्यम से परीक्षा में बैठ सकते हैं. IGCSE एक विश्व स्तरीय संस्था है. इसके अलावा CBSE और तमिलनाडु बोर्ड भी छात्रों को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में परीक्षा में बैठने की छूट देते हैं.

 

जहां पालक मानते हैं कि स्वयं अध्ययन में बच्चो के व्यक्तिगत रूचियों और जरूरतों से समझौते करने पड़ते हैं वहीं स्कूल के ज्यादातर शिक्षक मानते हैं कि इस व्यवस्था में बच्चों में सोशल स्किल का विकास नहीं हो पाता है. बच्चा मेधावी है या मानसिक रूप से स्वस्थ्य नहीं होने की स्थिति में स्वयं अध्ययन ज्यादा बेहतर विकल्प है. मधुवंती अरूण जैसी कुछ शिक्षाविदों का मानना है कि पालक और शिक्षक दोनों मिलकर बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं. वह कहती हैं कि स्कूल में शिक्षक और घर पर पालको का बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है. यह भी समझना होगा यह शिक्षक का स्थान कब व्यवसाय में और पैसे कमाने के लिए बदल गया. इस पर कभी कोई नहीं बोलता. हर पालक अपने बच्चो को सर्वोतम देने के लिए हर तरह का प्रयास करते है. और उसी प्रयास का फायदा लेते हुए कुछ शिक्षण सस्थान और शिक्षक भी पालको की जेब काटते जाते है.

 

शिक्षा का उदेश्य छात्र का सर्वांगीण विकास है इसपर सभी शिक्षा क्षेत्र के विद्वान एकमत हैं. स्वयं अध्ययन हो या पारंपरिक स्कूल दोनों ही स्थितियों में छात्रों का सर्वांगीण विकास हो पाए इसका ध्यान रखना जरूरी है. स्वयं अध्ययन करवाने का निर्णय लेने से पहले पालको को किसी अनुभवी स्वयं अध्ययन करवाने वाले पालको या मार्गदर्शक से बात जरूर कर लेना चाहिए. हमें लगता है की हमारे बच्चे का हित सिर्फ और सिर्फ हम और हमारा बच्चा ही समझ सकता है. कोई और नहीं ऐसा इंसान तो बिलकुल ही नहीं जो पैसे के लिए हमारे बच्चो के संपर्क में आता है. फिर वह कोई भी हो, कोई भी.

 

यह समझना भी जरुरी है!

क्या सभी पालक बच्चो को स्वयं अध्ययन करा सकते है!

क्या सही में बच्चो का स्कुल में सोशल स्किल और सामजिक विकास होता है?

यह जानेगे अगले लेख में!


अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे:-

श्री. देश मिश्रा

स्वयं अध्ययन करता पालक


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